Sunday, 22 January 2017

याद है मुझे पापा

याद है मुझे पापा

कैसे मेरी छोटी सी खुशी भी आपके लिये बडी बन जाती थी,
कैसे मम्मी कि डांट खाने पर आपकी दुलार, कडे धुप मे छावँ बन जाती थी ।
                     कैसे हम भाई बहनों के प्यार का हर पल आपके लिए खुशियो की लहर बन जाती थी।
कैसे बिन बोले ही हमारी हर चाहत, आपकी जीने का मकसद बन जाती थी।
हाँ, ये याद नहीं कैसे छोटी ऊँगली पकड़ कर आपने चलना सिखाया था ,
पर ये जनता जरूर हूँ की चलना आप ही से आया था।
कैसे वर्षो दूर रह कर भी , प्यार हम पर आपार बरसाया था ,
कैसे मरी हर सिसकियो नई आँखे आपका भिगाया था।
कैसे हमारी हर आहट, हर चाहत पहचान लेते थे,
कैसे अपनी हर ख़ुशी हम पर कुर्बान देते थे। 
                     ढूंढती है निगाहे, मन मानता नहीं, जिंदगी तो कट रही है पर,
बिन आपके जीने में वो बात भी तो नहीं।
सब साथ ही तो है, सब अपने ही तो है,
पर अब किसी में वो बात भी तो नहीं। 
लड़ाईया अब भी होती है घर में अपने,
पर आपकी लाड़ भरी डाँट जैसी बात भी तो नहीं।
कोई भूल थी मेरी तो कहते मुझसे,
ऐसे अकेले छोड़ जाना, अच्छी बात भी तो नहीं। 
आज भी जब कोई मुझे “शम्भू जी का बेटा” कहता है तो खुद पर फक्र सा होता है,
पर कोई आपको “अवनीश के पापा” कहे, वो समय आपने देखा भी तो नहीं।
हो नहीं सकता, पर कोशिश कर लौट आइये, हमे फिर एक बार अपने मजबूत सीने से लगाइये।
सारे गिले- शिकवे, एक बार तो हमे बताइये, गर गलती हमारी थी तो, खींच के थप्पड़ लगाइये। 
खैर......
कोई बात नही, नियम ऊपर वाले का बदल तो नहीं सकता मैं ,
 पर इतना जरूर है, आपको ऐसे ही जाने नही दुंगा मैं।
आपसे जो भी मिला, अपनी बेटी को जरूर दूंगा,
आपके नाम, काम, इज्जत और विश्वास को खुद में जिन्दा रखूँगा मैं।

                                                   22/01/2017