Tuesday, 26 September 2017

मेरी नटखट अन्वेषा


मेरी नटखट अन्वेषा

 

पापा, घल जल्दी आना,

गुब्बाले और टोफी लाना,

जब तेरी आवाज कानो मे पडती है,

सच मे जीने कि चाह बढती है,

धीरे धीरे, चलते गिरते दौड़ने लगी तू ,

जीवन में हर रस को घोलने लगी तू ,

तेरी तुतली आवाज अजब सी ख़ुशी देती है ,

सारे तकलीफो को पल में हर लेती है ,

अभी कल की बात ही तो लगती है,

तू मेरी गोद में पहली बार आयी है,

दो साल बीत गए,  पर अब भी महसूस होता है,

तू मुझ सी और मेरी ही परछाई है,

सच में ,

तुझे वो हर बात पसंद है , जो मुझे भी है,

तुझे वो हर रंग पसंद है , जो मुझे भी है,

तुझे वो हर चीज़ पसंद है , जो मुझे भी है,

तुझे वो हर राग पसंद है , जो मुझे भी है,

तु मेरी सुख की संभावना है,

तु मेरी ईश्वर की आराधना है।

तु है तो ये सुन्दर सा जहां है,

तु नहीं तो तेरे पापा का अस्तित्व कहाँ है?

तु है तो, घर में पायल की छनकार होती है,

तु है तो, घर में खुशियों की भरमार होती है,

तेरे नन्हे हाथो का स्पर्श, फूलो का सा लगता है,

तेरी प्यारी माँ को मेरे पास होने सा लगता है.

ऐसे ही चलते हुए, हॅसते हुए, खेलते हुए, तुझे बढ़ते रहना है,

जीवन की हर बुलंदियों को छू, मेरी शान और खुद की मान बढ़ाते रहना है। 

 

Saturday, 10 June 2017

ताकतवर कौन

 आज विक्रांत का पहला दिन था उसके क्लिनिक में| बहुत खुश था वो आज, क्योंकि बहुत मेहनत के बाद, हर इम्तहान पास कर वो यहाँ पहुँचा था | आईने के सामने वो अपने बालो को सवाँर रहा था कि सहसा उसे उसका बीता वक्त दिखने लगा | जैसे कल कि बात हो,  वो स्कूल से घर आया था,  परिक्षा का परिणाम पत्र लेकर,  8वी में नम्बर कम आये थे | डर था, पापा नाराज होंगे, क्या जवाब दुंगा, मार भी पड़ सकती हैं | वैसे पापा ने कभी मारा नही था पर फिर भी वो बहुत डरता था | जैसे तैसे घर पहूँचा, पापा बाहर उसका इंतजार कर रहे थे,  उत्सुकता से देख रहे थे | उसने कांपते हाथों से रिपोर्ट कार्ड पापा को दिया | शायद वो मन ही मन तैयार था, जो होने वाला था उसे सोच कर ही वो हिल गया था |
पापा ने रिपोर्ट कार्ड लेकर अंदर चले गए,  वो वही जम गया | पापा अंदर गये पर बाहर नही आये, रात में खाने पर भी नहीं | वो बहुत घबराये नजरो से कभी कमरे के दरवाजे को देखता कभी माँ को...
पर कुछ समझ नहीं पा रहा था | किसी तरह जागते-सोते रात काटी,  सुबह भी चाय के साथ अखबार पढ़ते पापा को ना देख कर धड़कन और तेज हो रही थी | डरते डरते पापा के कमरे के दरवाजे से झांक कर देखा तो पापा सामने ही कुर्सी पर बैठे थे उनकी नज़र छत की तरफ थी | वो जाने को मुडा ही था के पापा कि आवाज कानो में पड़ी "विक्की  अंदर आओ"
वो काँप गया | किसी तरह अंदर पहूँचा, तो पापा ने उसे पास रखी कुर्सी पर बैठने को कहा | वो बैठ गया पर पैर अभी भी काँप रहे थे |  पापा थोडी देर देखते रहे और वो बर्फ कि तरह पिघल रहा था |
तभी पापा ने कहा, बेटा ये क्या है ये मुझे पता है पर क्यों हैं ये जानना चाहता हूँ |
उसके पास कोई जवाब नहीं था, बस नजरे जमीन में छेद कर रही थी, आँखें नम होती जा रही थी | कुछ देर कि शांति के बाद पापा ने कहा, बेटा कारण चाहे जो हो पर परिणाम सही नही है | तुममे कोई कमी नही है शायद हम वो सुविधा मुहैया नही करा पा रहे जिसकी जरुरत है तुम्हें| कोई बात नहीं, भूल जाओ इसे और फिर से विश्वास के साथ कोशिश करो, और स्कूल के बाद कोचिंग शुरू करो,  अगली बार तुम बहुत अच्छे नम्बर लाओगे, यकीन है मुझे | उसे लगा जैसे वो आज तक समझ ही नहीं पाया उन्हें,  कितना प्यार और विश्वास हैं मुझ पर |
पर मन को शांति मिली, चलो जान बची| उसने दुसरे दिन से ही कोचिंग जाना शुरू कर दिया था | शाम तक थक जाता था , खेलना का समय भी नहीं मिलता था| पर एक बात उसके दिमाग मे घूमने लगी कि पापा भी रोज देर से आने लगे थे | कमजोर भी लगने लगे थे|
उसने तब से पीछे मुड़ कर नही देखा, दिल लगा कर पढ़ाई करके आज वो एक नामी डाक्टर बन गया था|
बाल सवाँर कर वो क्लिनिक पहुँच गया| धीरे धीरे दिन निकलता गया, दिल से सभी मरीज़ो कि सेवा करता... बहुत नाम था उसका...
उसके पापा को उस पर बहुत नाज था, सब बहुत इज्जत करते थे उनकी, एक दिन पापा अपने किसी दोस्त के साथ टहल रहे थे सुबह, दोस्त बता रहे थे की कैसे उनके बेटे ने एक मरीज को मौत के मुँह से बचा लिया था| पापा का सीना चौडा हुआ जा रहा था| तभी उनके दोस्त ने कहा कि आज तुमसे मशहूर एवं ताकतवर तुम्हारा बेटा हैं,  पापा को अच्छा लगा पर उनके मन में कुछ घर कर गया| वो सीधा क्लिनिक पहूँच  गये|बहुत भीड़ थी वहाँ,  इस लिये वो बाहर ही बैठ कर इंतजार करने लगे, जब सारे मरीज चले गये तब वो अदंर गये तो वो थक कर चुर होकर अपने कुर्सी पर बैठा था| आँखें बंद थी उसकी...
पापा ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा, वो सहसा ही आँखें खोलकर पापा को देखा तो उठने लगा पर पापा ने इशारे से बैठने को कहा| उसने आने का कारण जानना चाहा तो पापा ने कहा कि बस देखने आये थे कि कैसे काम कर रहे हो, फिर उन्होने कहा कि बेटा एक बात जानना चाहता हूँ,  उसने कहा कि जी कहे पापा, क्या बात है???
"बेटा, तुम्हारी नजरो मे सबसे ताकतवर कौन है?" उसने बंद आँखों से ही बस इतना कहा "मैं हूँ "
पापा ने कुछ नहीं कहा, थोड़े समय के लिए शांत हो गये, फिर जाने लगे...
उसने पूछा, क्या हुआ पापा??  आप अचानक ही कहाँ जाने लगे?  और आपने क्या और क्यूँ पूछा??
पापा ने कहा कि बस कुछ काम याद आ गया इसलिए जा रहे है | पर उसके बार बार कहने पर उन्होने भारी मन से अपना प्रश्न दोहराया " सबसे ताकतवर कौन? "
उसने इस बार भी बिना सोचे ही कहा "आप पापा"...
पापा मुस्कुराहट लिये बोले बेटा मुझे बुरा नही लगा सुनकर जो तुमने पहले कहा... इस लिए अपनी बात को बदलने कि कोई जरुरत नहीं है...
उसने कहा नही पापा मैं तब भी सही था और अब भी... वो उठा और उन्हें अपनी कुर्सी पर बैठाने लगा, वो विस्मय भरी नजरो से उसे देखे जा रहे थे...
वो आगे बोला, जी पापा आपने सही सुना..
जब मैने ये कहा कि सबसे ताकतवर मैं हूँ तब आपके हाथ मेरे कंधो पर थे, और जब ये कहा कि आप हैं तब आप मेरे सामने...
आपके साथ के बिना ना मैं तब कुछ था और ना आज हूँ...
पापा कि आँखें नम हो चुकी थी,  उनकी आवाज लड़खड़ाने लगी ,वो कुछ कहना चाहते थे तभी उसने आगे कहा,  पापा मैं जानता हूँ कैसे ओवर टाइम काम कर के आपने मुझे कोचिंग में भेजा था, कैसे अपनी सारी खुशियों को मेरे लिए बिना उफ्फ किये कुर्बान किया है, आप हो तो मैं हूँ, वरना कुछ नहीं...
अभी वो कुछ और कहता तब तक पापा ने उसे गले से लगा लिया...  कुछ देर तक सन्नाटा छा गया,  फिर पापा ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, बेटा आज मैं जीत गया...

अवनीश

Friday, 10 February 2017

बदलते देखा

आज बैठे बैठे मैं अपने कुछ जीवन में जुड़े व्यक्तिओ के बारे में सोचने लगा, कैसे वो अपना न होते हुए भी अपने हो गए। और जो अपने थे, पता ही ना चला कब हाथ से रेत की तरह निकल गए। दिल से चंद अल्फाज निकले , जिन्हें यहाँ लिख रहा हूँ।
समय को समय के साथ बदलते देखा,
हमने अपनों की भी निगाहों को फिरते देखा,
जो कहते थे कभी तू अपना है मेरा,
हमें देख कर उनको भी करवट बदलते देखा।
नजर बदल दो कोई बात नहीं,
पर नज़र फेरने सी भी कोई बात भी नहीं।
समय के साथ आगे बढ़ना जरूरी है,
अपने पीछे छूट जाये, ऐसी क्या मज़बूरी है ?
राह में नए नए साथी मिले, अच्छी बात है,
पर हमराह से नज़रफ़रेबी, अच्छी बात भी तो नहीं।
चलो,जीवनपथ पर आगे बढ़ो, अच्छी बात है,
पर कोई अपना छूट जाये, अच्छी बात भी तो नहीं।
अवनीश

Sunday, 22 January 2017

याद है मुझे पापा

याद है मुझे पापा

कैसे मेरी छोटी सी खुशी भी आपके लिये बडी बन जाती थी,
कैसे मम्मी कि डांट खाने पर आपकी दुलार, कडे धुप मे छावँ बन जाती थी ।
                     कैसे हम भाई बहनों के प्यार का हर पल आपके लिए खुशियो की लहर बन जाती थी।
कैसे बिन बोले ही हमारी हर चाहत, आपकी जीने का मकसद बन जाती थी।
हाँ, ये याद नहीं कैसे छोटी ऊँगली पकड़ कर आपने चलना सिखाया था ,
पर ये जनता जरूर हूँ की चलना आप ही से आया था।
कैसे वर्षो दूर रह कर भी , प्यार हम पर आपार बरसाया था ,
कैसे मरी हर सिसकियो नई आँखे आपका भिगाया था।
कैसे हमारी हर आहट, हर चाहत पहचान लेते थे,
कैसे अपनी हर ख़ुशी हम पर कुर्बान देते थे। 
                     ढूंढती है निगाहे, मन मानता नहीं, जिंदगी तो कट रही है पर,
बिन आपके जीने में वो बात भी तो नहीं।
सब साथ ही तो है, सब अपने ही तो है,
पर अब किसी में वो बात भी तो नहीं। 
लड़ाईया अब भी होती है घर में अपने,
पर आपकी लाड़ भरी डाँट जैसी बात भी तो नहीं।
कोई भूल थी मेरी तो कहते मुझसे,
ऐसे अकेले छोड़ जाना, अच्छी बात भी तो नहीं। 
आज भी जब कोई मुझे “शम्भू जी का बेटा” कहता है तो खुद पर फक्र सा होता है,
पर कोई आपको “अवनीश के पापा” कहे, वो समय आपने देखा भी तो नहीं।
हो नहीं सकता, पर कोशिश कर लौट आइये, हमे फिर एक बार अपने मजबूत सीने से लगाइये।
सारे गिले- शिकवे, एक बार तो हमे बताइये, गर गलती हमारी थी तो, खींच के थप्पड़ लगाइये। 
खैर......
कोई बात नही, नियम ऊपर वाले का बदल तो नहीं सकता मैं ,
 पर इतना जरूर है, आपको ऐसे ही जाने नही दुंगा मैं।
आपसे जो भी मिला, अपनी बेटी को जरूर दूंगा,
आपके नाम, काम, इज्जत और विश्वास को खुद में जिन्दा रखूँगा मैं।

                                                   22/01/2017