आज बैठे बैठे मैं अपने कुछ जीवन में जुड़े व्यक्तिओ के बारे में सोचने लगा, कैसे वो अपना न होते हुए भी अपने हो गए। और जो अपने थे, पता ही ना चला कब हाथ से रेत की तरह निकल गए। दिल से चंद अल्फाज निकले , जिन्हें यहाँ लिख रहा हूँ।
समय को समय के साथ बदलते देखा,
हमने अपनों की भी निगाहों को फिरते देखा,
जो कहते थे कभी तू अपना है मेरा,
हमें देख कर उनको भी करवट बदलते देखा।
नजर बदल दो कोई बात नहीं,
पर नज़र फेरने सी भी कोई बात भी नहीं।
समय के साथ आगे बढ़ना जरूरी है,
अपने पीछे छूट जाये, ऐसी क्या मज़बूरी है ?
राह में नए नए साथी मिले, अच्छी बात है,
पर हमराह से नज़रफ़रेबी, अच्छी बात भी तो नहीं।
चलो,जीवनपथ पर आगे बढ़ो, अच्छी बात है,
पर कोई अपना छूट जाये, अच्छी बात भी तो नहीं।
हमने अपनों की भी निगाहों को फिरते देखा,
जो कहते थे कभी तू अपना है मेरा,
हमें देख कर उनको भी करवट बदलते देखा।
नजर बदल दो कोई बात नहीं,
पर नज़र फेरने सी भी कोई बात भी नहीं।
समय के साथ आगे बढ़ना जरूरी है,
अपने पीछे छूट जाये, ऐसी क्या मज़बूरी है ?
राह में नए नए साथी मिले, अच्छी बात है,
पर हमराह से नज़रफ़रेबी, अच्छी बात भी तो नहीं।
चलो,जीवनपथ पर आगे बढ़ो, अच्छी बात है,
पर कोई अपना छूट जाये, अच्छी बात भी तो नहीं।
अवनीश
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