Friday, 20 September 2024

“अन्वेशा” मेरी शान

 

 “अन्वेशा” मेरी शान

 

मेरी बेटी मेरा नाज है, एक खूबसूरत एहसास है।

कड़कती धुप में शीतल हवाओ की तरह,

वो उदासी के हर दर्द का इलाज़ होती हैं।

आज उसका छठा जन्मदिन है, दिल से दुआएँ और प्यार आपार है।

कोशिश यहीं है की दू उसे वो सब,जिसकी वो हक़दार है।

 

जैसे जैसे वो बड़ी हो रही है, समझने लगी है जज्बात सारे।

कहे अनकहे मुश्किलों को,समझने और सुलझाने लगी हमारे।

सोचता हूँ कभी ये कैसे संभव है,

एक छोटी सी बच्ची अपने पिता की भावना कैसे समझ सकती है।

फिर अन्तर्मन से आवाज आती है,

वो बेटी है, माँ शक्ति का स्वरूप है, कुछ भी कर सकती है।

इस छोटी उम्र में, जैसे वो अपने भाई को सम्हालती है,

चॉकलेट के बहाने खाना खिलाती है,

उसकी तोतली जबान, हमसे ज्यादा समझती है.

देख कर लगता है, बचपन ऐसे ही सवरती है।

वैसे तो हर पल रोम रोम मेरा, आशीष देता है तुम्हे बेटा,

पर आज के इस शुभ अवसर पर तुम्हे वचन देता हूँ।

जब तक रहूँगा तब तक और उसके बाद भी,

तुम्हें कोई कमी नहीं होने दूंगा।

तुम्हारे इस प्यारी मुस्कान को कभी खोने नहीं दूंगा।

ऐसे ही हसते हुए, जीवनपथ पर आगे बढ़ो।

मैं हूँ ना बेटा, कभी घबराना मत,

तुम्हे कभी हारने नहीं दूंगा। 

                                                                                                                                                अवनीश

                                                              २६/०९/२०२१

आप कैसे हैं पापा...

 

सब खुश है, सब खुश ही तो हैं, आप कैसे हैं पापा,

यहां किसी चीज की कमी नहीं, पर आप वहाँ कैसे हैं पापा,

 

फर्क बस इतना आया है तब में और अब में,

आप दिखते तो हो धरा और नभ में ,

पर आपको छू नहीं सकता, बातें कर नहीं सकता अब मैं ,

 

हसती आँखों में बीते वक्त का कारवां साथ चलता है,

पर दिल में कहीं देख छोटा सा दर्द हमेशा पलता है,

 

ख्वाहिशों का बोझ लिए जिंदगी में,

 एक-एक कर हर अरमान जल जलता है,

बंजर है सपनों की धरती, उम्मीदों का सूखा आसमान लगता है

 

लगता है बैठ कहीं आप मुझे आवाज लगाते हो,

खाली कुर्सी देख पापा आप याद बहुत आते है,

 

तस्वीर देख आपकी, बेटी करती है खड़ा पहाड़ रोज सवालों का,

तूफान से चलता रहता है मन में आपके ख्यालों का,

 

 क्या बताऊं उसे , गए क्यों आप, मिलने क्यों नहीं आते हो,

 सोफे का कोने पर बैठा देख उसे, आप याद बहुत आते हैं,

 

आज अपने बेटे को देख मुझे यह लगता है हर बेटा अपने पिता की जान होता है,

पर यह भी एक सच है कि हर पिता सिर्फ पिता नहीं बेटे की पहचान होता है,

 

बच्चों की खुशियों को पूरा करना हर पिता का अरमान होता है,

पर दुनिया के हर रिश्ते से ज्यादा ठोस पिता का सम्मान होता है।

 

Tuesday, 20 August 2024

आजादी! कैसी ये आजादी….

 

जहां बोले मुख, पर मन मौन है, जहां कहने को सुख है, पर न चैन है।

दिखलाने को खुशी, रूह बेचैन है...

क्या इस के लिए सीने पर गोली खाई थी पुरखो ने, क्या यह मंजर सोचा था लड़ाकू गोरखो ने,

कहने को लब आजाद है, पर विचार कैद है, जितने की कस म कस है, पर जहर ए जैद है।

मेरे पुरखे खोए, तीन भाई और दो बेटे, और आज की अराजकता देख, हम अब भी ना चेते।

लड़ाई अभी बाकी है दोस्त, मन में मन की जीत की, अकेले मुश्किल है, जरूरत है तुम जैसे मीत की।

देश तो आजाद है पर क्या वासी आजाद हुए, क्या भारत और इंडिया के अंतर तुम्हे ज्ञात हुए।

गर नही तो सुनो, बतलाता हूं राज इन दोनों का, नख और सिख का अंतर है, गिनवाता हूं साज इन दोनों का।

भारत, जो दिलों में बसता है, करता है सेवा सब जन की, इंडिया, वो जो चाहे छीनना वस्त्र भी हर तन की।

भारत, वो जो देता है दान सदैव ही ज्ञान का, इंडिया, वो जो करे दिखावा अभिमान का।

भारत, जहां सब का सब से काम हो, इंडिया, जहां रंगरलियों से भरी शाम हो।

भारत, जिसके हर जन के दिल में काबा काशी हो, इंडिया, जिसके जनों में छल, पर दिखावे को मृदुभाषी हो।

भारत, जो देने को धर्म मानता हो, इंडिया, जो लूटने को कर्म मानता हो।

बहुत है अंतर दोनो में, क्या क्या बताऊं, मन के दर्द को तुम्हे कैसे दिखाऊं।

लड़े से शान से मेरे दादा, परदादा और दिया साथ नेताजी बोस का, उन्हे क्या पता था, हम सम्हाल ना पाएंगे, उमंग अपने जोश का।

मुझे कहा गया था लिखो कुछ खास, पर टूटे छन से पढ़ के मेरी कविता उनके आस।

आजादी का मतलब गुलामी से ही नहीं, सोच से भी है। कुर्बानी से, दायित्व निर्वहन से और प्रेम से भी है।

आजादी जो समाज को एक करने को थी, सत्य और साहस से बुराई और जातिवाद से लड़ने को थी।

पर क्या आज इसको, इसका साज मिला, मेरे पुरखो को कुर्बानी का ताज मिला।

नही...

राजनीति ने सुरसा बन कद फैलाया, पर निश्छल युवक इसके कैद से बच ना पाया।

जाति, धर्म और मेरा तेरा से आगे बढ़ने ना दिया, काहे की आजादी, जीने भी नही मरने भी ना दिया।

आरक्षण से तपाया, कभी हंगामों के शोर से, बटवारे से डराया, कभी बाजुओं के जोर से।

पर अब सब जाग गए है, और सोते को जगाएंगे, दुख को भूल, जीत के गीत गायेंगे।

आजादी किसे कहते है, यह पाठ पढ़ाएंगे, सब से सब का मेल हो, इसको गांठ बनाएंगे।

कड़वी है पर मन के भाव है, कड़ी धूप के बाद की छाव है।

अब तो आजाद होकर रहेंगे, छूत के पाप धो कर रहेंगे।

 

तब भारत आजाद होगा, आने वाले पीढ़ी को हमारा बलिदान याद होगा।

:- अवनीश वर्मा