Saturday, 21 March 2015

इरादे मेरे




                                               

 इरादे मेरे


ज़िसकी निगाहो मे झाकना आंसा नहीं था कभी,
आज  अपनी ही निगाहो मे ना झांक पाया ये अवि׀׀
कभी सुर्य सी तेज़ थी इसमे, देवो सा परताप था,
चाँद सी ठंडक भी थी, चेहरे पर आफताब था׀׀

पर क्यों आज वो सहमा सा  लगता हैं?
औरो को छोड खुद से ही भागता सा  लगता है ׀׀
कभी जिसकी आवाज में मधुरता थी,
आज क्यों इतना कडवा बोलता हैं?
कभी जिन लोगों का सबसे प्यारा था,
आज क्यों वो उन्ही लोगों से घबराता हैं?
आखिर क्यों ...........................?

सुना था समय इंसान को बदल देता हैं,
पर क्या इस कदर जिन्दगी की सारी खुशियाँ एक झटके मे ले लेता हैं?
मैं कुछ करना चाहता हुँ,
जीवन पथ पर आगे बढना चाहता हुँ ׀׀

और मैं बढुंगा ये पता हैं मुझे ׀
आज नहीं तो कल ..............׀׀

क्योंकि इरादो पर रुकी है ये दुनीयाँ सारी,
और किसी मे दम कहाँ जो तोड दे हिम्मत हमारी ׀׀





18/04/2007

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