ॐ
बादलो कि
सांजिश
वक्त ने भी दिखाया ऐसा कुछ,
कि सारी कायनात से ही
रंजिश हुई ׀׀
अपने पहलु मे जब बटोरा सब कुछ,
तो खुद- ब- खुद एक बंदिश हुई ׀׀
मैने खुदा के तरफ देखा जब,
तभी बादलो के दरमिंया सांजिश हुई ׀׀
उनका कुछ ना हुआ,
जो
चुर हैं अपने मद मे,
मेरा घर मिट्टी का
था,
मेरे
घर ही बारिश हुई
׀׀
मैने पुछा ये
क्या किया तुमने,
तभी
उनके ठाहाको की आतिश हुई ׀׀
मैं समझ गया सब
कुछ,
उसके
आवाज से,
कि औरो के
नहीं,
खिलाफ
“अवि” के ही सांजिश हुई ׀׀
मैनें उसकी खुदगर्जी को,
यही सोच कर मान ली ׀׀
जीत होगी मेरे बुलंद इरादो कि,
मैने भी अब जिद है
ठान ली ׀׀
उसकी भी जिद है
बिजलियाँ गिराने कि,
मेरी
भी जिद है “आशि”याना वही बनाने की ׀׀
देखते है हार किसकी होती है,
मेरी
या बादल ही अपने शिकस्त पर रोती है ׀׀
“ मेरे इरादो से डर गया वो शायद,
तभी तो बहुत जोर कि बारिंश हुई”
10/09/2008
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