׀׀ॐ׀׀
बचपन
क्या वो दिन थे,
वो माँ कि गोद और वो पापा की कधें,
आज याद आ रहे है वो सब मुझे ׀׀
वो
रोते हुए सो जाना,
वो
खुद से ही बात करते हुए खो जाना ׀׀
वो
माँ का आवाज लगाना,
वो
अपने हाथो से खाना खिलाना,
वो
स्कूल के लिए तैयार करना,
वो
टिफिन का डिब्बा जल्दी जल्दी भरना,
वो
पापा के डांट से बचाना,
वो
दोपहर मे घर बंद कर के सुलाना,
वो
सबसे छुपा कर अपना मिठाई भी खिलाना,
वो
पापा का जिद करने पर डांटना,
पर
चुपके से उस जिद को पुरा करना,
वो
शाम को घुमाने ले जाना,
वो
आइस-क्रीम का खिलाना,
वो
किसी चीज को उंगली दिखाने पर,
वो
उनका घुरना,
फिर
बाद मे लाने का वादा करना,
वो दादी का बराबर
बराबर हिस्सा लगाना,
वो दादा जी का पढाना,
फिर मिश्री देना,
वो चाचा का टाँफी
दिलाना,
वो चाची का मनपसंद खाना बनाना,
वो दीदी का
अपने जेब खर्च मे से,
मेरे लिये गिफ्ट
खरिदना, गलती होने पर शिकायत करना,
वो भाई लोगो से प्यार
भरा टकरार, फिर सुलह,
वो भाईयो के साथ अपनी
टीम बनाना, फिर क्रिकेट खेलना,
क्या दिन थे वो बचपन के सुहाने,
क्युं इतनी दुर हो गया सब कुछ,
अब जिद भी अपनी, सपने भी अपने,
किस से कहुं कि क्या चाहिये मुझे,
मंजिलो को ढुंढते
ढुंढते ये हम कहाँ खो गये,
क्युं हम इतने बडे हो गये ׀׀ 05/05/2010
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